सावन कृपाल रूहानी मिशन
>> Tuesday, August 23, 2011
सावन कृपाल रूहानी मिशन की मूल शिक्षाएं क्या हैं?
- हमारा सच्चा स्वरूप आत्मिक है।
- आत्मा प्रभु का अंश है।
- प्रभु ने अपनी ज्योति एवं श्रुति द्वारा सृष्टि की रचना की।
- ध्यानाभ्यास द्वारा अन्तर मॆं प्रभु की ज्योति और श्रुति से सम्पर्क कर हमारी आत्मा वापस प्रभु मॆं लीन हो सकती है।
- एक जीवित सत्गुरु स्वयं यह आध्यात्मिक यात्रा समाप्त कर चुका है तथा अन्य आत्माओं को भी प्रभु की ज्योति व श्रुति से जोड़्ने में समर्थ है।
सन्तमत क्या है?
सन्तमत का शाब्दिक अर्थ है "संतों का मार्ग"। यह शताब्दियों पुराना आध्यात्मिक मार्ग है और अध्यात्म के समस्त पहलुओं को अपने आप में समेटे हुए है - भौतिक संसार में नैतिक जीवन व्यतीत करने से लेकर उच्चतर आध्यात्मिक अनुभवों तक, जो कि अंत में हमारी आत्मा का मिलाप परमात्मा से करा देता है, ध्यानाभ्यास की प्रक्रिया, नैतिक जीवन तथा जीवित सत्गुरु का मार्गदर्शन, संतमत के आधारस्तंभ हैं।
संतमत सकारात्मक अध्यात्म का मार्ग है, जिसमें हम अपने परिवार, समाज और संस्कृति में रहते हुए अपने समस्त सांसारिक उत्तरदायित्वों का निर्वाह करने के साथ-साथ अपने आत्मिक पक्ष का भी विकास करते हैं।संतमत का अनुसरण करने के लिए हमें अपने-अपने धर्मों व सम्प्रदायों में रहते हुए ही ध्यानाभ्यास करना चाहिए।
अपने आत्मिक अथवा आध्यात्मिक पक्ष का विकास करने के साथ ही हमें अपने परिवार, शिक्षा और आजीविका, समाज तथा विश्व के प्रति अपने कर्त्तव्यों का प्रेमपूर्वक पालन करना चाहिए।
सावन कृपाल रूहानी मिशन क्या है?
सावन कृपाल रूहानी मिशन एक लाभ-निरपेक्ष संस्था है, जो अध्यात्म, शांति और मानवता की सेवा के प्रति समर्पित है। सन्त राजिन्दर सिंह जी महाराज के मार्गदर्शन में यहां जिज्ञासु ध्यान की एक अत्यंत सरल व प्राकृतिक विधि सीखते हैं। प्रत्येक मनुष्य द्वारा आंतरिक शांति का व्यक्तिगत अनुभव प्राप्त करने से यह शांति बाहरी रूप से हमारे परिवारों, समाजों, देशों और फिर सम्पूर्ण विश्व में फैलती है।
सावन कृपाल रूहानी मिशन का अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय दिल्ली, भारत में स्थित है। यूनाइटेड स्टेट्स आफ अमेरिका में संस्था का राष्टीय मुख्यालय नेपरविले, इलिनोई में स्थित है। अमेरिका समेत विश्व के 40 राष्ट्रों में संस्था के 1500 से भी अधिक केन्द्र स्थापित हैं।
संतमत की शिक्षाओं में प्रभु का क्या रूप है?
- प्रभु एक ही है, जिसने सम्पूर्ण सृष्टि की रचना की है।
- प्रभु को विभिन्न धर्मों, भाषाओं और संस्कृतियों में विभिन्न नामों से पुकारा जाता है, परंतु वास्तव में वह् एक ही है।
प्रभु की ज्योति और श्रुति क्या है?
प्रभु की ज्योति और श्रुति प्रभु के ही दो रूप हैं, जिनके द्वारा इस सृष्टि की रचना हुई है। एक जीवित सत्गुरु द्वारा सिखाई जाने वाली ध्यानाभ्यास की विधि का पालन कर हम अपने अंतर में प्रभु की ज्योति और श्रुति से जुड़ सकते हैं तथा इस प्रकार अपने स्रोत (प्रभु) तक वापस जा सकते हैं।
अध्यात्म के मार्ग में जीवित सत्गुरु की क्या महत्ता है?
एक जीवित आध्यात्मिक सत्गुरु हमॆं प्रभु की ज्योति और श्रुति का साक्षात अनुभव प्रदान करने के अलावा आंतरिक रूहानी यात्रा में हमें नियमित मार्गदर्शन प्रदान करता है। वह ध्यानाभ्यास में हमें पेश आने वाली कठिनाईयों के समाधान करने के साथ-साथ हमारी भौतिक् जीवन की समस्याओं के निवारण करने के लिए भी उचित सलाह व सहायता प्रदान करता है।
एक जीवित सत्गुरु को पिछ्ले जीवित सत्गुरु द्वारा जीवात्माओं को नामदान प्रदान करने का उत्तरदायित्व सौंपा जाता है ताकि वे प्रभु की दिव्य ज्योति और श्रुति से जुडक़र चौरासी के चक्र से मुक्ति पा जाएं और वापस प्रभु में लीन हो जाएं।
सन्तमत की शिक्षाओं में नैतिक जीवन का क्या महत्त्व है?
आध्यात्मिक मार्ग पर उन्नति करने हेतु नैतिक गुणों से भरपूर जीवन व्यतीत करना अत्यंत आवश्यक है। ये नैतिक गुण हैं
- अहिंसा
- सत्य
- नम्रता
- पवित्रता
- निष्काम सेवा
- शाकाहारी भोजन
- शराब तथा अन्य नशीले पदार्थों से परहेज़
सत्संग क्या है?
सत्संग का अर्थ है एक जीवित सत्गुरु द्वारा दिया गया आध्यात्मिक प्रवचन। यह प्रवचन स्वयं सत्गुरु द्वारा अथवा उनके चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा दिया जाता है। इसमें सन्तमत की शिक्षाओं की व्याख्या तथा आध्यात्मिक मार्ग की बारीकियों की विवेचना की जाती है।
ज्योति ध्यानाभ्यास क्या है?
प्रभु की ज्योति और श्रुति क्या है?
प्रभु की ज्योति और श्रुति प्रभु के ही दो रूप हैं, जिनके द्वारा इस सृष्टि की रचना हुई है। एक जीवित सत्गुरु द्वारा सिखाई जाने वाली ध्यानाभ्यास की विधि का पालन कर हम अपने अंतर में प्रभु की ज्योति और श्रुति से जुड़ सकते हैं तथा इस प्रकार अपने स्रोत (प्रभु) तक वापस जा सकते हैं।
अध्यात्म के मार्ग में जीवित सत्गुरु की क्या महत्ता है?
एक जीवित आध्यात्मिक सत्गुरु हमॆं प्रभु की ज्योति और श्रुति का साक्षात अनुभव प्रदान करने के अलावा आंतरिक रूहानी यात्रा में हमें नियमित मार्गदर्शन प्रदान करता है। वह ध्यानाभ्यास में हमें पेश आने वाली कठिनाईयों के समाधान करने के साथ-साथ हमारी भौतिक् जीवन की समस्याओं के निवारण करने के लिए भी उचित सलाह व सहायता प्रदान करता है।
एक जीवित सत्गुरु को पिछ्ले जीवित सत्गुरु द्वारा जीवात्माओं को नामदान प्रदान करने का उत्तरदायित्व सौंपा जाता है ताकि वे प्रभु की दिव्य ज्योति और श्रुति से जुडक़र चौरासी के चक्र से मुक्ति पा जाएं और वापस प्रभु में लीन हो जाएं।
सन्तमत की शिक्षाओं में नैतिक जीवन का क्या महत्त्व है?
आध्यात्मिक मार्ग पर उन्नति करने हेतु नैतिक गुणों से भरपूर जीवन व्यतीत करना अत्यंत आवश्यक है। ये नैतिक गुण हैं
- अहिंसा
- सत्य
- नम्रता
- पवित्रता
- निष्काम सेवा
- शाकाहारी भोजन
- शराब तथा अन्य नशीले पदार्थों से परहेज़
सत्संग क्या है?
सत्संग का अर्थ है एक जीवित सत्गुरु द्वारा दिया गया आध्यात्मिक प्रवचन। यह प्रवचन स्वयं सत्गुरु द्वारा अथवा उनके चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा दिया जाता है। इसमें सन्तमत की शिक्षाओं की व्याख्या तथा आध्यात्मिक मार्ग की बारीकियों की विवेचना की जाती है।
ज्योति ध्यानाभ्यास क्या है?
संतमत में ज्योति ध्यानाभ्यास का अर्थ है, अंतर में प्रभु की ज्योति के दर्शन करना।
- शरीर को स्थिर करना।
- प्रभु के किसी भी जाति नाम के मानसिक उच्चारण द्वारा मन को स्थिर करना।
ध्यानाभ्यास को एक विज्ञान की भांति सिखाया जाता है, जिसे किसी भी धर्म, सम्प्रदाय अथवा विश्वास से जुड़ा इंसान अपना सकता है। ध्यानाभ्यास करने के लिए हमें अपना संप्रदाय परिवर्तित करने की आवश्यकता नहीं। जहां एक ओर ध्यानाभ्यास का मुख्य उद्देश्य पूर्ण रूप से आध्यात्मिक है, वहीं दूसरी और इससे हमें अनेक अतिरिक्त लाभ भी होते हैं, जैसे
- यह तनाव तथा तनाव-संबंधी रोगों को समाप्त कर हमारे शारीरिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।
- यह हमारी एकाग्रता में वृद्धि करता है, जिससे शिक्षा एवं अन्य कार्यों में हमारी उत्त्पादकता में बढ़ोतरी होती है।
- यह हमें आंतरिक शांति प्रदान करता है।
- अन्तर में अनुभव की गई शांति हमारे बाह्य व्यवहार में भी झलकने लगती है और धीरे-धीरे हमारे परिवार, समाज और सम्पूर्ण विश्व में फैल जाती है।
- शरीर को स्थिर करना।
- प्रभु के किसी भी जाति नाम के मानसिक उच्चारण द्वारा मन को स्थिर करना।
ध्यानाभ्यास को एक विज्ञान की भांति सिखाया जाता है, जिसे किसी भी धर्म, सम्प्रदाय अथवा विश्वास से जुड़ा इंसान अपना सकता है। ध्यानाभ्यास करने के लिए हमें अपना संप्रदाय परिवर्तित करने की आवश्यकता नहीं। जहां एक ओर ध्यानाभ्यास का मुख्य उद्देश्य पूर्ण रूप से आध्यात्मिक है, वहीं दूसरी और इससे हमें अनेक अतिरिक्त लाभ भी होते हैं, जैसे
- यह तनाव तथा तनाव-संबंधी रोगों को समाप्त कर हमारे शारीरिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।
- यह हमारी एकाग्रता में वृद्धि करता है, जिससे शिक्षा एवं अन्य कार्यों में हमारी उत्त्पादकता में बढ़ोतरी होती है।
- यह हमें आंतरिक शांति प्रदान करता है।
- अन्तर में अनुभव की गई शांति हमारे बाह्य व्यवहार में भी झलकने लगती है और धीरे-धीरे हमारे परिवार, समाज और सम्पूर्ण विश्व में फैल जाती है।
शाकाहारी भोजन क्यों महत्त्वपूर्ण है?
आज सम्पूर्ण विश्व में अधिक से अधिक लोग विभिन्न कारणों से शाकाहारी भोजन पद्धति अपना रहे हैं। कुछ लोग ऎसा इसलिये कर रहे हैं क्योंकि इससॆ हमारे गृह के महत्त्वपूर्ण संसाधनों का संरक्षण होता है। कुछ लोग बेहतर स्वास्थ्य के लिए तो कुछ जीवन के प्रति सम्मान की भावना से शाकाहार अपना रहे हैं। सदियों से अनेक धर्मों के संत-महापुरुष इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण कारण से शाकाहार अपनाने की शिक्षा देते आएं हैं। शाकाहारी जीवन आध्यात्मिक मार्ग पर उन्नति में हमारी बहुत सहायता करता है। "शाकाहार....." नामक पुस्तक के लेखक, संत दर्शन सिंह जी महाराज, के अनुसार अहिंसा व प्रेम शाकाहारी जीवन का आधार है। इससे हमारे शरीर और आत्मा के बीच संतुलन बना रहता है।
क्या मेरे धर्म और ध्यान की प्रक्रिया में परस्पर अन्तर्विरोध है?
संतमत कॆ महापुरुष कभी यह नहीं सिखाते कि ध्यानाभ्यास के मार्ग पर चलने के लिए हम अपना धर्म परिवर्तित करें। इसके विपरीत, वे हमें "सकारात्मक अध्यात्म" की शिक्षा देते हैं ताकि हम आध्यात्मिक मार्ग पर उन्नति करने के साथ ही अपने समस्त सांसारिक उत्तरदायित्वॊं का भी भली-भांति निर्वाह करें। हम अपनी मेहनत की कमाई से अपना व अपने परिवार का भरण-पोषण करें तथा अपने समाज व देश के आदर्श नागरिक बनें।
क्या सावन कृपाल रूहानी मिशन और विश्व कॆ अन्य धर्मों-सम्प्रदायों में कोई समानता है?
क्या आध्यात्मिक जिज्ञासुओं को किन्हीं विशेष रीति-रिवाज़ों का पालन करना पड़ता है?
नहीं। रीति-रिवाज़ आदि सभी धर्मों का बाहरी अंग हैं। सावन कृपाल रूहानी मिशन के सदस्यों को केवल एक साधन नियमित रूप से करना पड़ता है और वह है ध्यानाभ्यास। ध्यान की प्रक्रिया उन्होंने अपने शिष्यों को भी सिखाई। मानव होने के नाते यह हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है कि हम अपने सच्चे स्वरूप को जानें और प्रभु में वापस लीन हो जाएं। यह उद्देश्य ध्यानाभ्यास की प्रक्रिया द्वारा ही परिपूर्ण किया जा सकता है।
क्या मुझे कोई विशेष धर्मग्रंथ पढ़ना चाहिए?
सावन कृपाल रूहानी मिशन का बाइबिल, कुरान, गुरु ग्रंथ साहिब या टोरा की तरह कोई विशेष धर्मग्रंथ नहीं है परंतु हमारे यहां इस मार्ग के महापुरुषों द्वारा लिखित अनेक पुस्तकें व प्रवचन-संकलन हैं, जो विश्व की पचास से भी अधिक भाषाओं में अनुवादित किए जा चुके हैं।
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